रांची में डैम, जलाशयों और जल स्रोतों के प्रदूषण और अतिक्रमण से जुड़े मुद्दे को लेकर दायर जनहित याचिका पर गुरुवार को लगातार तीसरे दिन सुनवाई करते हुए झारखंड हाईकोर्ट ने पेयजल और नगर विकास के अफसरों को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट में सशरीर हाजिर हुए पेयजल विभाग के सचिव और नगर आयुक्त से पूछा गया कि गंदे पानी की आपूर्ति की शिकायतों पर कोई हरकत क्यों नहीं होती? 

कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद ही विभाग क्यों जागता है? सुनवाई के दौरान अदालत ने रांची के बड़ा तालाब और तीनों डैम की सफाई के लिए लांग टर्म प्लान के बारे में जानकारी मांगी तो अफसरों ने बताया कि इसके लिए कई एजेंसियों से विचार विमर्श किया जा रहा है. पेयजल विभाग के सचिव ने कहा कि इसमें नगर विकास विभाग की भी भूमिका है.

शहर में सीवरेज-ड्रेनेज योजना पर काम चल रहा है. जब तक यह काम पूरा नहीं होता, तब तक जल स्रोतों को स्वच्छ रखने में बड़ी चुनौती है. इस पर अदालत ने अगली सुनवाई में नगर विकास विभाग के सचिव को उपस्थित होने का निर्देश दिया. इसके पहले मंगलवार और बुधवार को भी अदालत ने इस मामले की सुनवाई करते हुए नदी, तालाब और जल स्रोतों के प्रदूषण और अतिक्रमण पर नाराजगी जाहिर की थी. 

कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि रांची की हरमू नदी और बड़ा तालाब की सफाई और सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों की राशि खर्च हुई है तो ये बदहाल क्यों हैं? पानी से दुर्गंध क्यों उठ रही है? इस मामले में झारखंड सिविल सोसायटी और रोहित राय की ओर से हस्तक्षेप याचिकाएं दायर की गई हैं. इसमें कहा गया है कि रांची के बड़ा तालाब में नालियों का पानी लगातार गिर रहा है. बदबू इस कदर उठ रही है कि तालाब के आसपास की घनी आबादी परेशान है. रांची के कांके डैम, हटिया डैम एवं रुक्का डैम की जमीन का अतिक्रमण किए जाने के मामले में भी कोर्ट ने पूर्व में स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था.

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