कंबोडिया अपने यहां बाघों की आबादी बढ़ाने के लिए भारत से चार बाघों को लाने की कोशिश में जुटा है.पिछले साल भारत ने कंबोडिया के साथ एक समझौता किया था. इस समझौते के तहत भारत ने कंबोडिया में अपने बाघों को भेजने को लेकर वहां की तकनीक और तैयारियों पर अपना ध्यान देना शुरू कर दिया है.

इसी समझौते के तहत कंबोडिया को उम्मीद है कि उसे भारत से चार बाघ आयात करने में मदद मिलेगी. इसका उद्देश्य कंबोडिया में बाघों की आबादी को पुनर्जीवित करना है.

कंबोडिया के सूखे जंगल कभी बड़ी संख्या में इंडोचाइनीज बाघों का घर हुआ करते थे, लेकिन संरक्षणवादियों का कहना है कि बाघों और उनके शिकार के बड़े पैमाने पर अवैध शिकार ने उनकी संख्या को नष्ट कर दिया है.

कंबोडिया में बाघ को आखिरी बार 2007 में एक कैमरा ट्रैप से देखा गया था और सरकार ने 2016 में कंबोडिया में बाघों को विलुप्त घोषित कर दिया था.

कंबोडिया के पर्यावरण मंत्रालय के प्रवक्ता ख्वे अतित्या ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि एक नर और तीन मादा 2024 के अंत में कंबोडिया पहुंच सकते हैं” उन्होंने कहा कि बाघों को जंगल में छोड़े जाने से पहले उन्हें वातावरण के लिए अनुकूल बनाने के लिए पश्चिमी कोह कांग प्रांत में टाटाई वन्यजीव अभयारण्य के अंदर 90 हेक्टेयर के जंगल में भेजा जाएगा. उन्होंने इस बात की जानकारी नहीं दी कि भारत से किस प्रकार के बाघ को लाया जाएगा.

बाघों को लेकर कैसी है तैयारी अतित्या ने कहा कि अधिकारियों ने इस सप्ताह वन्यजीवों, विशेषकर हिरण और सूअर जैसे बाघों के शिकार वाले जानवरों की निगरानी के लिए कार्डामॉम पर्वत के रिजर्व में एक किलोमीटर के अंतराल पर 400 से अधिक कैमरे लगाने का काम शुरू किया.

उन्होंने कहा कैमरों से मिली जानकारी “बाघों के प्रजनन में मदद करेगी” उन्होंने बताया कि अगर परियोजना सुचारू रूप से चलती है तो अगले पांच सालों में बारह और बाघों का आयात किया जाएगा.

कंबोडिया में बाघ कैसे विलुप्त हो गए जंगलों की कटाई और अवैध शिकार ने पूरे एशिया में बाघों की संख्या को करीब-करीब खत्म कर दिया है. कंबोडिया में लगातार हो रहे विकास के कारण कई जंगल काट दिए गए और रिहाइश इतनी बढ़ने लगी कि बाघों के जीवन पर खतरा मंडराने लगा. इस कारण उन्हें छोटे निवास स्थलों में अपना गुजारा करना पड़ा जिससे उनकी सेहत और प्रजनन क्षमता पर असर पड़ा.

जैसे-जैसे जंगल कम होते गए कंबोडिया से बाघ भी गायब होते चले गए. एशियाई देश कंबोडिया, लाओस और वियतनाम सभी ने बाघों की अपनी मूल आबादी खो दी है, जबकि माना जाता है कि म्यांमार के जंगलों में केवल 23 बाघ बचे हैं. कंबोडिया और भारत ने 2022 में बाघों और उनके आवासों को बहाल करने पर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.

भारत में बड़े पैमाने पर संरक्षण अभियान के बाद पिछले साल जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में बाघों की आबादी 3,600 से अधिक होने का अनुमान लगाया गया था.

भारत में 2018 में बाघों की संख्या 2,967 थी. पिछले चार सालों में करीब 24 फीसदी की बढ़ोतरी के बाद भारत में दुनिया के 75 फीसदी बाघ रहते हैं. भारत में बाघों की स्थिति पर रिपोर्ट के मुताबिक देश में सबसे अधिक (785) बाघ मध्य प्रदेश में हैं. इसके बाद कर्नाटक का नंबर है, जहां 2022 में बाघों की कुल संख्या 563 रही. भारत में चीतों को फिर बसाने पर सवाल भारत में बाघों की संख्या तो बढ़ी लेकिन चीतों को बसाने का काम उनकी मौतों के कारण सुर्खियों में रहा.

मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में भारत चीतों को दोबारा बसाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन एक के बाद एक चीतों की मौत ने कई सवाल खड़े किए हैं. कूनो नेशनल पार्क में अब तक 10 चीतों की मौत हो चुकी है.

भारत में देसी चीते 70 साल पहले विलुप्त हो चुके हैं लेकिन सरकार अपने बहुचर्चित प्रोजेक्ट चीता के जरिए मध्य प्रदेश में दोबारा चीतों को बसाने की मुहिम चला रही है.

इसके लिए अफ्रीका से चीते लाए गए थे. 16 जनवरी को नामीबिया से आए एक और चीते “शौर्यन की मौत हो गई थी. कूनो नेशनल पार्क में अब तक सात चीतों और तीन शावकों की मौत हो चुकी है. कूनो नेशनल पार्क में चीतों को बसाने के इरादे से नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से 20 चीते लाए गए थे.

लेकिन अलग-अलग कारणों से 10 चीतों की अब तक मौत हो चुकी है. भारत का चीता प्रॉजेक्ट दुनिया की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है.

अधिकारी हर साल 5 या 10 चीते लाकर उनकी संख्या को आने वाले सालों में 35 तक पहुंचाना चाहते हैं. रिपोर्ट: आमिर अंसारी.

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