अमेरिका ने तुर्की को 23 अरब डॉलर के एफ-16 फाइटर जेट देने का फैसला  किया है। इस डील को मंजूरी दे दी गई है।

इस डील के तहत तुर्की को 40 एफ-16 फाइटर जेट मिलेंगे। इसके अलावा उसके बेड़े में शामिल 79 फाइटर जेट को अपग्रेड भी किया जाएगा।

बता दें कि कश्मीर समेत कई मामलों में तुर्की अकसर पाकिस्तान के साथ खड़ा नजर आता था। हालांकि इस बार दिल्ली में आयोजित जी20 सम्मेलन में उसका रुख नरम नजर आया।

अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की ने स्वीडन की नाटो सदस्यता का समर्थन किया था। इस डील को उसी कदम का इनाम माना जा रहा है।

वहीं अमेरिका के कई सांसदों ने इस कदम का विरोध भी किया है। उनका कहना है कि तुर्की का मानवाधिकार का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। ऐसे में उसे घातक फाइटर जेट देना सही कदम नहीं है। 

अमेरिका ने चली है बड़ी चाल
तुर्की को फाइटर जेट देना भी अमेरिका की एक चाल बताई जा रही है। दरअसल तुर्की और ग्रीस में लंबे समय से तनावचल रहा है। अमेरिका ने ग्रीस को भी एफ-35 फाइटर जेट देने को मंजूरी दी है।

ये लड़ाकू विमान एफ-16 से ज्यादा ताकतवर हैं। बता दें कि दोनों ही देश नाटो के सदस्य हैं। ग्रीस ने 2020 में ही अमेरिका से एफ-35 खरीदने की रुचि दिखाई थी।

ग्रीस को 40 एफ-35 लाइटनिंग II जॉइंट स्ट्राइक फाइटर जेट और संबंधित उपकरण मिलेंगे। 

बता दें कि तुर्की भी 2021 से ही एफ-16 फ्लीट को मजबूत करने की मांग कर रहा था। हालांकि नाटो में स्वीडन का विरोध एक रोड़ा बना हुआ था।

जब तुर्की ने स्वीडन के मामले में समर्थन कर दिया तो यह रास्ता साफ हो गया। वहीं इस कदम को लेकर डेमोक्रेटिक सांसद बेन कार्डिक ने कहा, यह फैसला हल्के में नहीं लिया गया है।

काफी सोच विचारकर के बाद तुर्की को फाइटर जेट देने का फैसला किया गया है। उन्होंने कहा, हम तुर्की के साथ संबंध सुधारना चाहते हैं।

जिस तरह से रूस अपने शांतिप्रिय पड़ोसियों को परेशान कर रहा है। उसपर शिकंजा कसने के लिए नाटो का विस्तार जरूरी है। 

15 दिन में आपत्ति जता सकते हैं सांसद
अभी यह डील फाइनल नहीं मानी जा रही है। अमेरिका में कांग्रेस को आपत्ति दर्ज कराने के लिए 15 दिन का समय दिया जाता है।

इसके बाद ही डील को फाइनल माना जाएगा। बता दें कि तुर्की ने स्वीडन को नाटो में शामिल करने पर सहमति जताने में एक साल का ज्यादा का वक्त लिया।

उसका मानना था कि स्वीडन उसकी सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है और इसलिए वह कुर्दिश लड़ाकों के खिलाफ नहीं जाता। 

बता दें कि बीते साल अप्रैल में फिनलैंड नाटो का सदस्य बना था। वहीं अब आंखें हंगरी पर हैं। हंगरी ने अभी स्वीडन को शामिल करने को लेकर सहमति नहीं जताई है।

हालांकि तुर्की के फैसले के बाद हंगरी की तरफ से भी जल्द फैसला लेने की उम्मीद जताई जा रही है। 

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