नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लिया है। कोर्ट के निर्देशनुसार देश में कहीं भी बिना अदालत के अनुमति के 1 अक्टूबर तक संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की संपत्ति को तब तक ध्वस्त नहीं जा सकता जब तक कि वैधानिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता, लेकिन यह आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों जैसे किसी भी अनधिकृत निर्माण पर लागू नहीं होगा।

2 सितंबर को एक महत्वपूर्ण फैसले में बुलडोजर एक्शन को कानून के खिलाफ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई व्यक्ति चाहे दोषी ही क्यों न पाया जाए, तब भी बिना कानूनी प्रक्रिया के उसकी प्रॉपर्टी को ध्वस्त नहीं किया जा सकता। इस पर कोर्ट ने कहा कि कानून का पालन किए बिना किसी की संपत्ति को ध्वस्त करना न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई आरोपी है तब भी उसकी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि वह सार्वजनिक सड़कों को बाधित करने वाले किसी भी अवैध ढांचे को संरक्षण नहीं देगा। कोर्ट ने संबंधित पक्षों से सुझाव देने को कहा ताकि शीर्ष अदालत अचल संपत्तियों के ध्वस्त से संबंधित मुद्दे पर अखिल भारतीय आधार पर उचित दिशा-निर्देश जारी कर सके।

सुप्रीम कोर्ट ने कुछ समय पहले भी बुल्डोजर जस्टिस पर सवाल खड़े किए थे। इस दौरान जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा था कि किसी शख्स के आरोपी होने के चलते उसके घर पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता। आरोपी ने अपराध किया है या नहीं, ये तय करना कोर्ट का काम है सरकार का नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस देश में किसी शख्स की गलती की सजा उसके परिजनों को ऐसी कार्रवाई करके नहीं दी जा सकती। कोर्ट इस तरह की बुलडोजर कार्रवाई को नजरंदाज नहीं कर सकता। इस तरह की कार्रवाई कानून के शासन पर ही बुलडोजर चलाने जैसा होगा। अपराध में कथित संलिप्तता, किसी संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं है।

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