18 जून को निर्जला एकादशी है. 24 एकादशी में यह इस एकादशी का खास महत्व है. भीषण गर्मी के बीच पड़ने वाले इस व्रत में भक्त बिना जल ग्रहण किए भगवान विष्णु की अराधना करते हैं. लेकिन, क्या आप जानते हैं, निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है? इसके पीछे एक रोचक मान्यता है. स्वयं महर्षि वेद व्यास ने इस एकादशी के महत्व को बताया है.

पलवल की ज्योतिषी डॉ. भावना सेहरावत ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार, पांडवों में भीमसेन अधिक शक्तिशाली थे. उनको स्वादिष्ट भोजन का बहुत शौक था. उनसे भूख बर्दाश्त नहीं होती थी, इसलिए वह कभी एकादशी व्रत नहीं रख पाते थे. वहीं, पांडवों में भीम के अलावा सभी भाई और द्रौपदी साल की 24 एकादशी का व्रत सच्चे मन से रखते थे. एक बार भीम अपनी इस कमजोरी के कारण परेशान हो गए.

उनको ऐसा लगता था कि वह एकादशी व्रत नहीं कर पा रहे हैं, जिसकी वजह से श्रीहरि का अपमान हो रहा है. इसके समाधान के लिए भीम महर्षि व्यास के पास पहुंचे. महर्षि ने भीम को एकादशी व्रत अवश्य करने के लिए कहा. यह भी कहा कि ज्येष्ठ माह में पड़ने वाली निर्जला एकादशी व्रत रखने से जातक को सभी 24 एकादशी व्रत के बारबर शुभ फल की प्राप्ति होती है. इसी वजह से निर्जला एकादशी व्रत को भीमसेनी एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है.

इस दिन रखा जाएगा व्रत
मान्यता के अनुसार सभी एकादशियों में श्रेष्ठ एवं अक्षय फल प्रदान करने वाली ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला या भीमसेनी एकादशी है. इस व्रत में पानी पीना वर्जित है, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 17 जून सुबह 4:43 पर शुरू हो रही है. इसका समापन 18 जून सुबह 06:24 पर होगा. उदया तिथि के अनुसार 18 जून 2024 को निर्जला एकादशी व्रत रखा जाएगा. इस पारन 19 जून को होगा.

इस दिन रखा जाएगा व्रत
मान्यता के अनुसार सभी एकादशियों में श्रेष्ठ एवं अक्षय फल प्रदान करने वाली ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला या भीमसेनी एकादशी है. इस व्रत में पानी पीना वर्जित है, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं. ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 17 जून सुबह 4:43 पर शुरू हो रही है. इसका समापन 18 जून सुबह 06:24 पर होगा. उदया तिथि के अनुसार 18 जून 2024 को निर्जला एकादशी व्रत रखा जाएगा. इस पारन 19 जून को होगा.

निर्जला एकादशी के दिन करें ये उपाय
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि निर्जला एकादशी के दिन श्रीहरि को प्रिय तुलसी की पूजा करनी चाहिए. इस व्रत में एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक निर्जल रहकर व्रत करने का विधान है. एकादशी के दिन गीता पाठ, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ व ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करें. रात्रि के समय भगवान नारायण की प्रसन्नता के लिए नृत्य, भजन-कीर्तन जागरण करना चाहिए.

जरूर करें ये काम
एकादशी व्रत की सिद्धि के लिए भगवान विष्णु के समक्ष घी का अखंड दीपक जलाएं एवं दीपदान करें. भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन आसमान के नीचे सायंकाल घरों, मंदिरों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप प्रज्वलित करने चाहिए, गंगा आदि पवित्र नदियों में दीपदान करना चाहिए.
 

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