अयोध्या राम मंदिर यानी सदियों की कहानी पर सोमवार को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही विराम लग गया।

हालांकि, मंदिर के सदियों पुराने सफर की चर्चाएं अब भी जारी हैं। कहा जाता है कि 70 के दशक में जब खुदाई चल रही थी, तब मंदिर के सबूत के तौर पर पहली चीज ‘पूर्ण कलश’ मिली थी।

तब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI के दल में रहे केके मोहम्मद इस बात की पुष्टि कर चुके हैं।

मोहम्मद को भी उत्तर प्रदेश के अयोध्या में आयोजित मंदिर समारोह का न्योता भेजा गया था। टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में वह 1976-77 के दौर को याद करते हैं, जब अयोध्या का मुद्दा इतना बड़ा नहीं था।

तब उन्होंने प्रोफेसर बीबी लाल की अगुवाई में ट्रेनी के तौर पर काम करना शुरू ही किया था। वह बताते हैं कि 12 स्तंभ नजर आए थे, जिन्हें देखकर कोई भी बता सकता था कि ये मंदिर से संबंधित हैं।

उन्होंने बताया, ‘स्तंभों के निचले हिस्से में हिंदू धर्म में समृद्धि का प्रतीक माने जाने वाले पूर्ण कलश मिले। ये अष्ट मंगल चिह्नों में से एक थे।

वह पहला सबूत था। इसके बाद प्रोफेसर लाल ने पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सों की खुदाई की, जहां हिंदू मंदिरों की विशेषता वाली कुछ मूर्तियां मिलीं। कुछ का रूप बिगाड़ दिया गया था, लेकिन हिंदू प्रतीक साफ नजर आ रहे थे। वे दूसरा सबूत थे।’

उन्होंने बताया, ‘टेराकोटा की मूर्तियां तीसरा सबूत थीं। डॉक्टर लाल ने पाया कि मस्जिद के नीचे मंदिर हो सकता है।’ मोहम्मद ने प्रोफेसर लाल को मिले सबूतों की वकालत भी की थी।

रिपोर्ट के अनुसार, उनका कहना है, ‘प्रोफेसर लाल ने अपने काम को विशेष रूप से यह सोचकर नहीं दिखाया कि इससे लोग भड़क जाएंगे। उन्होंने इसे अकादमिक खोज के तौर पर अलग कर दिया।

एक दशक के बाद मार्क्सवादी इतिहासकारों का एक समूह…एक बयान लेकर आया कि प्रोफेसर लाल को… मंदिर से जुड़ा कुछ नहीं मिला था…। प्रोफेसर लाल को अपना बचाव करना पड़ा। वे प्रेस के पास पहुंचे और अपनी खोज बताई।’

इधर, पूर्व एएसआई अधिकारी को काफी आलोचना का भी सामना करना पड़ा था। हालांकि, तमाम धमकियों को बाद भी वह अपनी बात पर अड़े रहे। उनके खिलाफ आंतरिक जांच भी बैठी और उनका गोवा तबादला कर दिया गया था।

By

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *